ग्रेट निकोबार परियोजना पर्यावरण कानूनों के अनुरूप है, इससे आदिवासी समूहों को कोई नुकसान नहीं होगा: केंद्रीय मंत्री
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने प्रस्तावित बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वन भूमि के हस्तांतरण और स्वदेशी समुदायों को विस्थापित करने पर चिंता जताई थी।
इस परियोजना के अंतर्गत आने वाले मुख्य पहलुओं में शामिल हैं:
1. **अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट पोर्ट**: इस पोर्ट के माध्यम से भारत की समुद्री व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि होगी। यह पोर्ट दक्षिण पूर्व एशिया और अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करेगा।
2. **पर्यटन का विकास**: निकोबार द्वीप समूह में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई रिसॉर्ट्स और अन्य सुविधाओं का विकास किया जाएगा, जिससे यह क्षेत्र एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनेगा।
3. **अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा**: एक नया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी बनाया जाएगा, जो इस क्षेत्र को देश और दुनिया के अन्य हिस्सों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
4. **वातावरण संरक्षण**: इस प्रोजेक्ट के तहत पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय वन्यजीवों के संरक्षण का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा।
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के स्थानीय जनजातियों और पर्यावरण पर संभावित प्रभाव को लेकर कई चिंताएँ उठाई गई हैं। ये प्रभाव मुख्य रूप से दो पहलुओं में देखे जा सकते हैं:
### 1. **स्थानीय जनजातियों पर प्रभाव:**
- **आवास और विस्थापन**: इस परियोजना के तहत भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता होगी, जिससे स्थानीय जनजातियों, विशेषकर शोंपेन और निकोबारी जनजातियों के पारंपरिक जीवन और आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वे सदियों से इस क्षेत्र में रहते आए हैं और उनकी आजीविका मुख्य रूप से जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है।
- **संस्कृति और परंपरा पर असर**: इन जनजातियों की संस्कृति और परंपराओं पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि बाहरी लोगों की आमद और विकास के कारण उनकी पारंपरिक जीवनशैली में बदलाव आ सकता है। इससे उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी खतरा हो सकता है।
- **आर्थिक असमानता**: विकास के नाम पर रोजगार और सुविधाओं का वादा किया जा रहा है, लेकिन यह भी संभावना है कि स्थानीय जनजातियों को इन लाभों से वंचित किया जा सकता है या उनके पास इनका समान लाभ नहीं पहुंचेगा, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।
### 2. **पर्यावरण पर प्रभाव:**
- **जैव विविधता का नुकसान**: ग्रेट निकोबार द्वीप जैव विविधता से भरपूर है, जिसमें दुर्लभ और संकटग्रस्त वन्यजीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं। परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर वन कटाई और भूमि अधिग्रहण से इन प्रजातियों के आवास नष्ट हो सकते हैं, जिससे उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
- **प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव**: विकास के कारण जल संसाधनों, वन्यजीव अभयारण्यों, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा। इससे पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो सकता है, जो दीर्घकालिक रूप से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- **प्राकृतिक आपदाओं का खतरा**: निकोबार द्वीप भूकंप प्रवण क्षेत्र में स्थित है, और बड़े पैमाने पर निर्माण और विकास गतिविधियों से भूवैज्ञानिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।
इन सबके बावजूद, परियोजना के समर्थकों का कहना है कि इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव को कम से कम किया जा सके। सरकार ने पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और अन्य आवश्यक कदम उठाने का वादा किया है ताकि स्थानीय जनजातियों और पर्यावरण पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव पड़े। लेकिन इस परिदृश्य में सतत विकास और स्थानीय समुदायों की सहमति महत्वपूर्ण होगी।
हालांकि इस परियोजना का उद्देश्य आर्थिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ-साथ पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं को भी ध्यान में रखा गया है। परियोजना को लेकर कुछ विरोध भी हुआ है, खासकर पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मुद्दों के कारण, क्योंकि यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है।
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत के पूर्वी तट पर एक महत्वपूर्ण विकास परियोजना है, जो देश की सामरिक और आर्थिक क्षमता को और मजबूत करने का प्रयास कर रही है।
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